देश की मूल भावना, अगर कांग्रेस इसका आदर करती तो आज इतनी दुर्बल नहीं हुई होती
कांग्रेस के स्थापना दिवस के अवसर पर मल्लिकार्जुन खरगे के यह कहने पर हैरानी नहीं कि वर्तमान सरकार में नफरत की खाई खोदने के साथ देश की मूल भावना पर प्रहार हो रहा है। उनका यह कथन यही दर्शाता है कि वह राजनीतिक विमर्श के मामले में उसी राह पर चलना चाहते हैं, जिस पर सोनिया और राहुल गांधी एक लंबे समय से चलते आ रहे हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सोनिया गांधी किस तरह यह कहती रहती हैं कि संविधान खतरे में है अथवा बोलने की आजादी को कुचला जा रहा है। राहुल गांधी का स्वर भी यही रहता है कि मोदी सरकार के चलते देश रसातल में जा रहा है।
अभी चंद दिनों पहले भारत जोड़ो यात्रा के दिल्ली आगमन के अवसर पर एक संबोधन में उन्होंने कहा था कि देश में नफरत फैलाने का काम किया जा रहा है। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि 2800 किलोमीटर की यात्रा में उन्हें कहीं भी नफरत का माहौल नहीं दिखा, लेकिन वह इस नतीजे पर भी पहुंच गए कि सरकार नफरत फैला रही है। मल्लिकार्जुन खरगे ने भी यही साबित करने की कोशिश की। स्पष्ट है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कोई नया विमर्श खड़ा करने वाले नहीं हैं। इसकी पुष्टि हाल में उनकी ओर से दिए गए कुछ बयानों से भी होती है। उनकी मानें तो स्वतंत्रता संघर्ष में केवल कांग्रेस के लोगों ने ही कुर्बानी दी और किसी अन्य ने कुछ नहीं किया और यहां तक कि उनके घर से कोई कुत्ता तक नहीं मरा? क्या इसे प्यार और सद्भाव की भाषा कहा जा सकता है।
यह विडंबना ही है कि कांग्रेस एकता और अखंडता की बातें तो खूब करती है, लेकिन देश के विभाजन की जिम्मेदारी लेने से इन्कार करती है। एक ऐसे समय जब भारत जोड़ो यात्रा कुछ दिनों बाद जम्मू-कश्मीर जाने वाली है, तब कांग्रेस को अनुच्छेद-370 और 35-ए हटाने के फैसले पर अपने विचार रखने चाहिए। इसलिए रखने चाहिए, क्योंकि संसद में उसने इस फैसले का विरोध किया था। कांग्रेस को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद-370 के तहत विशेष अधिकार देना देश की मूल भावना के अनुरूप था?
वास्तव में ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में किस तरह देश की मूल भावना का निरादर करने वाले फैसले लिए। इनके दुष्परिणाम देश को आज भी भोगने पड़ रहे हैं। कांग्रेस को यह आभास हो तो बेहतर कि उसका झुकाव वामपंथ से अति वामपंथ की ओर होता जा रहा है और इसी का लाभ उठाकर भाजपा उसके कई उपेक्षित नेताओं को अपनाती जा रही है। वास्तव में यदि कांग्रेस देश की मूल भावना का आदर कर रही होती तो वह इतनी दुर्बल नहीं हुई होती।